बीएस का मतलब है भारत स्टेज और इससे वाहनों से होने वाला प्रदूषण का पता चलता है। बीएस का जरिए ही भारत सरकार गाड़ियों के इंजन से निकलने वाले धुएं से होने वाले प्रदूषण को रेगुलेट करती है। बीएस मानक सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड तय करता है। देश में चलने वाली हर गाड़ियों के लिए बीएस मानक जरूरी है। और यह मानक सभी देश के अलग – अलग भी हो सकते हैं जैसे अमेरिका में यह मानक टीयर-1, टीयर-2 होता है। वहीं यूरोप में यूरो मानक होता है।
बीएस के आगे लगने वाले नंबर का महत्व
बीएस के साथ जो नंबर होता है उससे पता चलता है कि इंजन कितना प्रदूषण फैलाता है। यानी जितना ज्यादा नंबर उतना कम प्रदूषण। अभी तक देश में बीएस-3 इंजन वाले वाहन को इजाजत थी लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद अब उन पर रोक लग गई है। अब बीएस-4 या उससे अधिक मानक वाले वाहन ही प्रयोग किए जा सकते हैं।
बीएस-2 इंजन के साथ हुई शुरूआत
भारतीय बाजार में बीएस-2 इंजन के साथ ऑटोमोबाइल बाजार की शुरूआत हुई। उसके बाद बीएस-3 तकनीक वाले इंजन आए। अब बीएस-4 तकनीक के साथ इंजन बाजार में मौजूद हैं। आने वाले समय में सीधे बीएस-6 तकनीक वाले इंजन निर्माण की तैयारी चल रही है, जो नाममात्र प्रदूषण करेंगे। भारत ने 2005 में पैमाने का नाम बदलते हुए इसको BS-II कर दिया। 1 अप्रैल 2010 को इस पैमाने को BS III कर दिया गया।
बीएस-6 तकनीक 2020 तक लागू की जाएगी।
महंगी होंगी BS-IV व्हीकल्स
महंगी होंगी BS-IV व्हीकल्स
BS-IV व्हीकल्स BS-III एमिशन नॉर्म्स वाले व्हीकल्स से ज्यादा महंगी होंगी । क्योंकि टू-व्हीलर्स में BS-IV तभी सपोर्ट करेगा जब उनमें कार्बोरेटर की जगह फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम दिया जाए। ऐसा करना कंपनियों को महंगा पड़ता है। अभी फ्यूल इंजेक्शन सिस्टम हायर एंड व्हीकल्स में आमतौर पर दिए जाते हैं।
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