नमस्कार दोस्तों,
अाज हम आपको भारत की प्रमुख जनजातियों के बारें में बताने जा रहें हैं।
थारू
यह जनजाति नैनीताल से गोरखपुर एवं तराई क्षेत्रों में निवास करती है। इनका सम्बन्ध किरात वंश से है। थारू जनजाति में 'संयुक्त परिवार' की प्रथा प्रचलित है। होली के अवसर पर महिलाएँ घर से बाहर पीपल के पेड़ के पास भोजन बनाती हैं। तथा रात को वहीं सोती हैं।
बुक्सा
उत्तराखण्ड के नैनीताल, पौड़ी, गढ़वाल, देहरादून जिलों में बुक्सा जनजाति निवास करती है। इनका सम्बन्ध पतवार राजपूत घराने से माना जाता है। ये हिन्दी भाषा बोलते हैं। बुक्सा जनजाति में दामाद अपने ससुराल में बस जाता है।
जौनसारी
यह जनजाति उत्तराखण्ड के देहरादून, टिहरी-गढ़वाल, उत्तरकाशी क्षेत्र में मिलती है। ये भूमध्यसागरीय क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं। इनमें 'बहुपति विवाह प्रथा' प्रचलित है। जौनसारी जनजाति जड़ी-बूटियों के निर्माण के लिए अधिक जानी जाती है।
भोटिया
उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा, चमोली पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जनजाति मंगोल प्रजाति की है एवं ऋतु प्रवास करती है
गोंड
भारत की जनजातियों में गोंड जनजाति सबसे बड़ी है। यह प्राक्-द्रविड़ प्रजाति की है। इनकी त्वचा का रंग काला, बाल काले, होठ मोटे, नाक बड़ी व फैली हुई होती है। यह मुख्यतः छत्तीसगढ़ के बस्तर, चांदा, दुर्ग जिलों में मिलती हैं।
मारिया
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के छिंदवाड़ा, जबलपुर और बिलासपुर जिलों में रहने वाली इस जनजाति की शरीर रचना गोंड जनजाति के समान है।कोल
मध्य प्रदेश के रीवा संभाग और जबलपुर जिले में निवास करने वाली जनजाति का मुख्य पेशा कृषि है।मीणा
राजस्थान में इस जनजाति की सर्वाधिक संख्या पाई जाती है ।यह मुख्यतः जयपुर, सवाई माधोपुर, उदयपुर, अलवर, चित्तौड़गढ़, कोटा, बूंदी वह डूंगरपुर जिले में रहते हैं।साँसी
यह राजस्थान के भरतपुर जिले में रहने वाली खानाबदोश जनजाति है। यह जनजाति स्वयं को जातिगत संरचना में सबसे नीचे मानती है।
भील
ये राजस्थान की द्वितीय प्रमुख जनजाति है एवं बाँसवाड़ा, डूँगरपुर, उदयपुर, सिरोही जिलों में निवास करती है। भील का अर्थ होता है धनुषधारी। ये स्वयं को महादेव की सन्तान मानती है।
सन्थाल
यह भारत की प्रमुख जनजाति व झारखण्ड की सर्वप्रमुख जनजाति है। यह बंगाल, ओडिशा व असम राज्यों में भी पाई जाति है। ये झारखण्ड में मुख्यतया सन्थाल परगना, राँची, सिंहभूम, हजारीबाग, धनबाद आदि जिलों में रहते हैं। सन्थाल ऑस्ट्रेलॉयड और द्रविड़ प्रजाति के होते है। ये 'मुण्डा' भाषा बोलते हैं तथा प्रकृति-पूजक हैं।
कोरवा
ये जनजाति झारखण्ड के पलामू जिले में पाई जाति है। मध्य प्रदेश में भी इस जनजाति के लोग निवास करते हैं। यह जनजाति कोलेरियन जनजाति से सम्बन्ध रखती है।
पहाड़ी खड़िया
सिंहभूम जिलों की पहाड़ियों में निवास करने वाली यह जनजाति खाद्य संग्रह, बागवानी व कृषि पर निर्भर है।
उराँव
यह झारखण्ड की प्रमुख जनजातियों में एक है। इनका सम्बन्ध प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति से है। इस जनजाति के लोग 'कुरूख' भाषा बोलते हैं जो मुण्डा भाषा से मिलती-जुलती है। ये मुख्यतः सन्थाल परगना व रोहतास जिलों में रहत हैं।
असुर
ये जनजाति मुख्यतः सिंहभूम (झारखण्ड) जिले में रहती है। ये प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति से सम्बन्धित है। ये मुण्डा वर्ग की 'मालेटा' भाषा बोलते हैं। लोहा गलाना, शिकार, खाद्य संग्रह व कृषि इनका मुख्य व्यवसाय है।
नागा
यह नागालैण्ड, मणिपुर व अरूणाचल प्रदेश की जनजाति है एवं इण्डो-मंगोलॉयड प्रजाति से सम्बन्ध रखती है। इस जनजाति के लोग अधिकांशतः नग्नावस्था में घूमते हैं। कृषि, पशुपालन व मुर्गीपालन इनका मुख्य व्यवसाय है।
टोडा
यह तमिलनाडू की नीलगिरि व उटकमण्डक पहाड़ियों में निवास करने वाली जनजाति है। इनका सम्बन्ध 'भूमध्यसागरीय प्रजाति' से है। ये जनजाति 'हृष्ट-पुष्ट', सुन्दर व गोरी होती है। इनका मुख्य व्यवसाय पशुचारण है।
थोम्पेन, सेण्टीनली व जाखा जनजाति
सभी जनजातियाँ अण्डमान-निकोबार की विलुप्त होती जा रही जनजातियाँ हैं। ये नीग्रिटो प्रजाति से सम्बन्धित हैं।
हल्वा
यह छत्तीसगढ़ के रायपुर व बस्तर जिलों में निवास करने वाली जनजाति हैं। इनकी बोली में मराठी भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग होता है। इनका मुख्य व्यवसाय कृषि है।
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