ई-कचरे से आशय उन तमाम पुराने पड़ चुके बेकार इलेक्ट्रॉनिक तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से है, जिन्हें उपयोग करने वाले खुली हवा में कहीं भी फेंक देते हैं। इस तरह के कचरे में कंप्यूटर, टीवी, डीवीडी प्लेयर, मोबाइल फोन चार्जर व अन्य दूसरे पदार्थ शामिल है।
कैसे बनता है ई-कचरा
नवाचार तथा फैशन में वृद्धि के कारण पुरानी वस्तुओं को छोड़ लोग तीव्र प्रौद्योगिकी से लैस अत्याधुनिक वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। इन नई वस्तुओं की संख्या में वृद्धि के कारण पुरानी वस्तुएं कचरे में परिवर्तित हो रही हैं। इसे ई-कचरा कहा जाता है। प्रायः विकसित देशों द्वारा इसी कचरे को विकासशील देशों में अपने निपटान हेतु भेज दिया जाता है। इस प्रकार की स्थिति मानववाद जैव पारिस्थितिकी के लिए एक चिंताजनक विषय है एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में पुनर्चक्रण हेतु 80 % ई-कचरा गुपचुप तरीके से भारत, चीन एवं पाकिस्तान जैसे देशों में भेजा जा रहा है। इसकी एक वजह इन देशों में ऐसे कचरों के निस्तारण हेतु पर्यावरण कानूनों का ढुलमुल होना बताया जाता है। आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में प्रयोग किए जा रहे लगभग 50 करोड़ कंप्यूटरों में 28.7 लाख किग्रा प्लास्टिक, 7167 लाख किलो शीशा तथा 2.6 लाख किलोग्राम पारा है। विकसित देशों में एक कंप्यूटर की आवश्यक उपयोग अवधि 2 वर्ष रह गई है। लोग 2 वर्ष की अवधि के बाद पुराने कंप्यूटर को त्यागकर नए को अपना लेते हैं। इसी प्रकार मोबाइल फोन की औसत आयु भी विकसित देशों में 2 वर्ष है। विकासशील देशों में कंप्यूटर तथा मोबाइल फोनों की बिक्री तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2011 में लगभग 73 करोड़ नए मॉडल के कंप्यूटर विकसित देशों में काम करने लगे हैं। इनमें से 17.8 करोड़ चीन में तथा 8 करोड़ भारत में है। इस प्रकार पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान कचरे में परिवर्तित हो रहे हैं। विकसित देशों में प्रयुक्त या प्रयोग से वंचित इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद विकासशील देशों में गैरकानूनी तरीके से लाए जाते हैं। जो थोड़े से उपयोग के बाद पूर्ण कचरे में बदल जाते हैं। कंप्यूटर, मोबाइल, टेलीविजन सेट, वाशिंग मशीन इत्यादि भारत चीन तथा थाईलैंड जैसे देशों में फैल रहे हैं। वर्ष 2007-2008 में भारत में लगभग 4 लाख टन ई -कचरा था। इसके अतिरिक्त पश्चिमी देशों से आए 50 हजार टन प्रयुक्त-अनुप्रयुक्त उत्पाद भारत में गैर कानूनी तरीके से आए। चीन का ई-कचरा भी नेपाल के रास्ते भारत में प्रवेश पा रहा है। चीन में 40 लाख टेलीविजन सेट, 50 लाख वाशिंग मशीन तथा रेफ्रिजरेटर, 7 लाख कंप्यूटर तथा 3 करोड़ मोबाइल फोन कचरे का रूप ले चुके हैं और शायद यह जल्दी ही भारत के कचरे का बड़ा भाग बन सकता है।
क्या हैं खतरे
ई कचरे में कुछ मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ जैसे सोना, प्लैटिनम इत्यादि भी होती हैं, जिनके लालच में व्यवसाई, ऐसे कचरों को भारत में मंगा रहे हैं। इन्हें छोड़ दें तो वास्तविकता भयावह है। इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में खतरनाक लेड, पारा तथा आरसेनिक जैसी भारी धातुएं तथा जहरीले पदार्थ बड़ी मात्रा में उपस्थित होते हैं। ई-कचरे का पुनर्चक्रीकरण करने से यही बात सामने आती है। यह एक आकर्षक किंतु खतरनाक विकल्प है। पुनर्चक्रीकरण के दौरान निकलने वाले रसायन तंत्रिका तंत्र तथा रक्त प्रवाह के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। बच्चों के मस्तिष्क का विकास बाधित हो सकता है। ई-कचरा भू जल को प्रदूषित कर सकता है। इसके द्वारा प्रदूषित जल के सेवन से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां भी हो सकती हैं। यह वायु प्रदूषण का कारक भी बन सकता है।
अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय
ई-कचरा विश्व स्तर पर चिंता का मुख्य विषय बन चुका है। इससे उत्पन्न समस्याओं की भयावहता को देखते हुए रणनीतियों का निर्माण भी किया जा रहा है। जिन बिंदुओं पर रणनीति बनाई जा रही है वह इस प्रकार हैं-
1. पुराने तथा प्रयोग से बाहर हो चुके उत्पादों को अन्य उपयोगों के लायक बनाना।
2. दोबारा और उत्पादों को नया रूप प्रदान करना।
3. पुनर्चक्रीकरण के दौरान पर्यावरण के साथ अधिक मित्र मत होना।
ई-कचरा की बढ़ती मात्रा को देखते हुए भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, मलेशिया तथा इंडोनेशिया ने इस बारे में नीतियों के निर्माण की पहल की है। पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर तथा स्वच्छ प्रौद्योगिकी के विकास पर बल दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम के महासचिव ऐसिम स्टेनर ने पाईक की रिपोर्ट के आधार पर माना है कि चीनी कचरे से सर्वाधिक प्रभावित है। चीन के बाद भारत ब्राजील तथा मेक्सिको ऐसे राष्ट्र हैं जहां ई-कचरे में हो रही लगातार वृद्धि चिंता का कारण है।
भारत में ई-कचरा
भारत में ई-कचरे पर अनुसंधान कर रही संस्था पाइक रिसर्च का मानना है कि वर्ष 2020 तक भारत के ई-कचरे में 500% तक वृद्धि हो सकती है। सबसे बड़ा खतरा मोबाइल फोनों की संख्या में हो रही वृद्धि के कारण है। मोबाइल फोनों के रूप में ई-कचरे में 18 गुना वृद्धि हो सकती है, जबकि टेलीविजन, फ्रीज तथा कंप्यूटर के रूप में इसमें 3 गुना वृद्धि की संभावना है। मोबाइल फोनों की प्रौद्योगिकी में आधुनिकीकरण की दर अन्य उत्पादों से अधिक तीव्र हैं। आधुनिकतम मोबाइल रखने का फैशन ई-कचरे को बढ़ा रहा है। अपने को आधुनिक दिखाने की होड़ में लोग बढ़ते खतरों से अनभिज्ञ है। भारत में ई-कचरे के बारे में जागरूकता की कमी है। एक मोबाइल में सर्किट बोर्ड-तांबे, सोने, लेड, निकेल, जिंक तथा बेरिलियम के मिश्रण से बनता है। दोबारा चार्ज की जाने वाली बैटरी में निकेल, लिथियम आयन तथा कोबाल्ट होता है। मोबाइल में प्रयुक्त अधिकांश धातुएं खतरनाक है। यह जहरीले पदार्थ है जो मिट्टी तथा जल में जाकर प्रदूषण फैलाते हैं। भारत के 10 बड़े शहर ई-कचरे की उत्पादन में सबसे आगे हैं। मुंबई में सर्वाधिक ई-कचरा सामने आता है। इसके उपरांत दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता तथा अहमदाबाद का स्थान है।
कैसे होगा बचाव
ई-कचरे के दुष्प्रभाव से बचाव तभी संभव है, जब हम इसके प्रति जागरुक हों। कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्माण में ऐसी तकनीकों का प्रयोग कर सकती हैं जिससे उन सामग्रियों का जीवनकाल अधिक लंबा हो। ऐसे मोबाइल फोनों का निर्माण किया जाना चाहिए जिनका जैविक विखंडन हो सके। तो कई नामी कंपनियां इस प्रकार के कार्यों को दिशा दे रही हैं। कई ऐसी प्रवृत्तियां है जिन्हें ध्यान में रखना जरूरी है-
पुराने मोबाइल फोनों या अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामग्रियों को पुनर्चक्रीकरण के लिए भेजना जरूरी है। मरम्मत होने लायक सामग्रियों के पुनः उपयोग को महत्व दिया जाना चाहिए। ऐसी सामग्रियों की खरीद करनी चाहिए जिनका उपयोग का लंबा हो तथा उनका पुनर्चक्रीकरण पर्यावरण की अनुकूलता के साथ हो सके। सूचनाओं, प्रवृतियों के प्रति जागरुक होना जरूरी है। अभी विकासशील देशों में इसके प्रति जागरूकता कम है। भारत के 17 % उपभोक्ता ही ई-कचरे के दुष्परिणाम तथा बचाव से भिज्ञ हैं। अभी केवल 3 % मोबाइल फोनों का ही पुनर्चक्रीकरण हो पा रहा है, शेष ई-कचरे में लगातार वृद्धि हो रही है।
अंतरिक्ष कचरा
अंतरिक्ष कचरे को ऑर्बिटल डिब्रीस स्पेस जंक और स्पेस वेस्ट के नाम से भी जाना जाता है। अंतरिक्ष में मानव कचरे का जमावड़ा हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत के साथ ही शुरू हो गया था। इनमें पुराने रॉकेट, निष्क्रिय सैटेलाइट और मिसाइल के विस्फोटक अवशेष शामिल होते हैं। इस कचरे में हजारों नट-बोल्ट, दस्ताने, उपग्रहों से उतरा पेंट, ईंधन टैंक और ढेरों ऐसी चीजें हैं जो अंतरिक्ष मिशनों के लिए भारी खतरा है।
कैसे बनता है ई-कचरा
नवाचार तथा फैशन में वृद्धि के कारण पुरानी वस्तुओं को छोड़ लोग तीव्र प्रौद्योगिकी से लैस अत्याधुनिक वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। इन नई वस्तुओं की संख्या में वृद्धि के कारण पुरानी वस्तुएं कचरे में परिवर्तित हो रही हैं। इसे ई-कचरा कहा जाता है। प्रायः विकसित देशों द्वारा इसी कचरे को विकासशील देशों में अपने निपटान हेतु भेज दिया जाता है। इस प्रकार की स्थिति मानववाद जैव पारिस्थितिकी के लिए एक चिंताजनक विषय है एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में पुनर्चक्रण हेतु 80 % ई-कचरा गुपचुप तरीके से भारत, चीन एवं पाकिस्तान जैसे देशों में भेजा जा रहा है। इसकी एक वजह इन देशों में ऐसे कचरों के निस्तारण हेतु पर्यावरण कानूनों का ढुलमुल होना बताया जाता है। आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में प्रयोग किए जा रहे लगभग 50 करोड़ कंप्यूटरों में 28.7 लाख किग्रा प्लास्टिक, 7167 लाख किलो शीशा तथा 2.6 लाख किलोग्राम पारा है। विकसित देशों में एक कंप्यूटर की आवश्यक उपयोग अवधि 2 वर्ष रह गई है। लोग 2 वर्ष की अवधि के बाद पुराने कंप्यूटर को त्यागकर नए को अपना लेते हैं। इसी प्रकार मोबाइल फोन की औसत आयु भी विकसित देशों में 2 वर्ष है। विकासशील देशों में कंप्यूटर तथा मोबाइल फोनों की बिक्री तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2011 में लगभग 73 करोड़ नए मॉडल के कंप्यूटर विकसित देशों में काम करने लगे हैं। इनमें से 17.8 करोड़ चीन में तथा 8 करोड़ भारत में है। इस प्रकार पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान कचरे में परिवर्तित हो रहे हैं। विकसित देशों में प्रयुक्त या प्रयोग से वंचित इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद विकासशील देशों में गैरकानूनी तरीके से लाए जाते हैं। जो थोड़े से उपयोग के बाद पूर्ण कचरे में बदल जाते हैं। कंप्यूटर, मोबाइल, टेलीविजन सेट, वाशिंग मशीन इत्यादि भारत चीन तथा थाईलैंड जैसे देशों में फैल रहे हैं। वर्ष 2007-2008 में भारत में लगभग 4 लाख टन ई -कचरा था। इसके अतिरिक्त पश्चिमी देशों से आए 50 हजार टन प्रयुक्त-अनुप्रयुक्त उत्पाद भारत में गैर कानूनी तरीके से आए। चीन का ई-कचरा भी नेपाल के रास्ते भारत में प्रवेश पा रहा है। चीन में 40 लाख टेलीविजन सेट, 50 लाख वाशिंग मशीन तथा रेफ्रिजरेटर, 7 लाख कंप्यूटर तथा 3 करोड़ मोबाइल फोन कचरे का रूप ले चुके हैं और शायद यह जल्दी ही भारत के कचरे का बड़ा भाग बन सकता है।
क्या हैं खतरे
ई कचरे में कुछ मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ जैसे सोना, प्लैटिनम इत्यादि भी होती हैं, जिनके लालच में व्यवसाई, ऐसे कचरों को भारत में मंगा रहे हैं। इन्हें छोड़ दें तो वास्तविकता भयावह है। इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं में खतरनाक लेड, पारा तथा आरसेनिक जैसी भारी धातुएं तथा जहरीले पदार्थ बड़ी मात्रा में उपस्थित होते हैं। ई-कचरे का पुनर्चक्रीकरण करने से यही बात सामने आती है। यह एक आकर्षक किंतु खतरनाक विकल्प है। पुनर्चक्रीकरण के दौरान निकलने वाले रसायन तंत्रिका तंत्र तथा रक्त प्रवाह के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। बच्चों के मस्तिष्क का विकास बाधित हो सकता है। ई-कचरा भू जल को प्रदूषित कर सकता है। इसके द्वारा प्रदूषित जल के सेवन से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां भी हो सकती हैं। यह वायु प्रदूषण का कारक भी बन सकता है।
अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय
ई-कचरा विश्व स्तर पर चिंता का मुख्य विषय बन चुका है। इससे उत्पन्न समस्याओं की भयावहता को देखते हुए रणनीतियों का निर्माण भी किया जा रहा है। जिन बिंदुओं पर रणनीति बनाई जा रही है वह इस प्रकार हैं-
1. पुराने तथा प्रयोग से बाहर हो चुके उत्पादों को अन्य उपयोगों के लायक बनाना।
2. दोबारा और उत्पादों को नया रूप प्रदान करना।
3. पुनर्चक्रीकरण के दौरान पर्यावरण के साथ अधिक मित्र मत होना।
ई-कचरा की बढ़ती मात्रा को देखते हुए भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, मलेशिया तथा इंडोनेशिया ने इस बारे में नीतियों के निर्माण की पहल की है। पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर तथा स्वच्छ प्रौद्योगिकी के विकास पर बल दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम के महासचिव ऐसिम स्टेनर ने पाईक की रिपोर्ट के आधार पर माना है कि चीनी कचरे से सर्वाधिक प्रभावित है। चीन के बाद भारत ब्राजील तथा मेक्सिको ऐसे राष्ट्र हैं जहां ई-कचरे में हो रही लगातार वृद्धि चिंता का कारण है।
भारत में ई-कचरा
भारत में ई-कचरे पर अनुसंधान कर रही संस्था पाइक रिसर्च का मानना है कि वर्ष 2020 तक भारत के ई-कचरे में 500% तक वृद्धि हो सकती है। सबसे बड़ा खतरा मोबाइल फोनों की संख्या में हो रही वृद्धि के कारण है। मोबाइल फोनों के रूप में ई-कचरे में 18 गुना वृद्धि हो सकती है, जबकि टेलीविजन, फ्रीज तथा कंप्यूटर के रूप में इसमें 3 गुना वृद्धि की संभावना है। मोबाइल फोनों की प्रौद्योगिकी में आधुनिकीकरण की दर अन्य उत्पादों से अधिक तीव्र हैं। आधुनिकतम मोबाइल रखने का फैशन ई-कचरे को बढ़ा रहा है। अपने को आधुनिक दिखाने की होड़ में लोग बढ़ते खतरों से अनभिज्ञ है। भारत में ई-कचरे के बारे में जागरूकता की कमी है। एक मोबाइल में सर्किट बोर्ड-तांबे, सोने, लेड, निकेल, जिंक तथा बेरिलियम के मिश्रण से बनता है। दोबारा चार्ज की जाने वाली बैटरी में निकेल, लिथियम आयन तथा कोबाल्ट होता है। मोबाइल में प्रयुक्त अधिकांश धातुएं खतरनाक है। यह जहरीले पदार्थ है जो मिट्टी तथा जल में जाकर प्रदूषण फैलाते हैं। भारत के 10 बड़े शहर ई-कचरे की उत्पादन में सबसे आगे हैं। मुंबई में सर्वाधिक ई-कचरा सामने आता है। इसके उपरांत दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता तथा अहमदाबाद का स्थान है।
कैसे होगा बचाव
ई-कचरे के दुष्प्रभाव से बचाव तभी संभव है, जब हम इसके प्रति जागरुक हों। कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्माण में ऐसी तकनीकों का प्रयोग कर सकती हैं जिससे उन सामग्रियों का जीवनकाल अधिक लंबा हो। ऐसे मोबाइल फोनों का निर्माण किया जाना चाहिए जिनका जैविक विखंडन हो सके। तो कई नामी कंपनियां इस प्रकार के कार्यों को दिशा दे रही हैं। कई ऐसी प्रवृत्तियां है जिन्हें ध्यान में रखना जरूरी है-
पुराने मोबाइल फोनों या अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामग्रियों को पुनर्चक्रीकरण के लिए भेजना जरूरी है। मरम्मत होने लायक सामग्रियों के पुनः उपयोग को महत्व दिया जाना चाहिए। ऐसी सामग्रियों की खरीद करनी चाहिए जिनका उपयोग का लंबा हो तथा उनका पुनर्चक्रीकरण पर्यावरण की अनुकूलता के साथ हो सके। सूचनाओं, प्रवृतियों के प्रति जागरुक होना जरूरी है। अभी विकासशील देशों में इसके प्रति जागरूकता कम है। भारत के 17 % उपभोक्ता ही ई-कचरे के दुष्परिणाम तथा बचाव से भिज्ञ हैं। अभी केवल 3 % मोबाइल फोनों का ही पुनर्चक्रीकरण हो पा रहा है, शेष ई-कचरे में लगातार वृद्धि हो रही है।
अंतरिक्ष कचरा
अंतरिक्ष कचरे को ऑर्बिटल डिब्रीस स्पेस जंक और स्पेस वेस्ट के नाम से भी जाना जाता है। अंतरिक्ष में मानव कचरे का जमावड़ा हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत के साथ ही शुरू हो गया था। इनमें पुराने रॉकेट, निष्क्रिय सैटेलाइट और मिसाइल के विस्फोटक अवशेष शामिल होते हैं। इस कचरे में हजारों नट-बोल्ट, दस्ताने, उपग्रहों से उतरा पेंट, ईंधन टैंक और ढेरों ऐसी चीजें हैं जो अंतरिक्ष मिशनों के लिए भारी खतरा है।
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ReplyDeletevery nice information
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